Wednesday, 19 April 2017

Educational movie review

BATTEL FOR SCHOOL BY SHANTA SINHA

      
INTRODUCTION
नाम : शान्ता सिन्हा
जन्म : 7 जनवरी 1950
जन्मस्थान : नेल्लोर (आन्ध्र प्रदेश)
उपलब्धियां : एलर्ट शंकर इन्टरनेशनल एजुकेशन अवार्ड (1999)
, पद्‌मश्री (1999), मैग्सेसे पुरस्कार (2003) |
उन्होंने अपनी शिक्षा ८ तक सेंट एनन हाई स्कूल, सिकंदराबाद से की फेर ९ से १२ उन्होंने लड़कियों के लिए कीज़ हाई स्कूल, सिकंदराबाद से की थी। उन्होंने १९७० में उस्मानिया विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम.ए की और उन्होंने १९७६ में जेएनयू से पीएचडी प्राप्त की।
शांता सिन्हा हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के साथ एक अकादमी है।                              

              प्रस्तुतीकरण
शहरों तथा गाँवों में गरीबी का जो परिणाम गरीबी को स्थायी बनाए रखने की बुनियाद बनता है, वह है बाल मजदूरी । जिन गरीब परिवारों के बच्चे गरीबी के बावजूद उनके माता-पिता की सोच के चलते स्कूल तक पहुँचते है, वहाँ गरीबी के दिन थोड़े रह जाते हैं । शान्ता सिन्हा ने इस निष्कर्ष को पूरे आन्ध्रप्रदेश में व्यापक रूप से फैलाने का काम किया । उन्होंने लोगों की इस धारणा को तोड़ा कि गरीबों के बच्चों के काम किए बिना परिवार का गुजारा नहीं हो सकता । इस तरह उन्होने अपनी संस्था मामिडिपुडी वैंकटारंगैया फाउन्डेशन (MVF) की सेक्रेटरी के नाते बाल मजदूरी पर अकुंश लगाया और बच्चों को स्कूल की राह पर डालने की व्यवस्था की । उन्होंने इस कार्य को तमाम विरोध के बावजूद संकल्पपूर्वक निभाया, इसके लिए उन्हें वर्ष 2003 कर मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |
बच्चों का शोषण
हमारे देश में लाखों बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं , जहां सामान्य नागरिकों का जीवन पूर्ण है वहीँ गरीब बच्चों का जीवन मेंहनत और कठिनाइयों से भरा है बच्चे घंटो तक कार्य करते हैं बिना किसी की सहायता के , बुरे बर्ताव के डर से , बेईज्जती और अपने स्वास्थ्य के ऊपर खतरा लिए वह बदतर जीवन के लिए कार्य करते हैं
अगर वह बाहर कार्य नहीं करते है तो उन्हें घर के कार्यों में लिप्त कर दिया जाता है
जो कपडे हम पहनते हैं वो भी किसी कपडे बनाने की फैक्ट्री में कम करने वाले बच्चे ने बनाये होते हैं और न जाने कितने बच्चे ऐसी जगहों पर काम करते हैं हम अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं
ज्यादातर आमिर और मध्यवर्गीय घर निर्भर करते हैं इन गरीब लड़के लड़कियों पर जो उनके घर में कार्य करते हैं , कुछ प्रश्न ऐसे भी आते हैं की क्या स्कूल जाने से अच यह नहीं है की बच्चे काम सीख रहे हैं ? या स्कूल जाना समय की बर्बादी है क्या ? 
स्कूल के लिए माता-पिता की मांग
हमारे देश के 75% स्कूल के बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं अगर माता पिता बच्चों को स्कूल भेजना भी चाहते हैं तो स्कूल बिल्डिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्कूल में प्रयोगशालाएं और शिक्षकों की कमी है , पिने का पानी और शौचालय नहीं हैं न ही बच्चों की अच्छे से देख-भाल की जाती है
कुछ माता-पिता जो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं वोह सोचते हैं की शिक्षा ही इस अवस्था से भरा निकलने का एकमात्र रास्ता है लेकिन वोह चाह कर भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं इसका कारण उनका उतना सामर्थ्य नहीं है

शिक्षा के अधिकार के लिए गरीबों का संघर्ष
इन्होंने शिक्षा को व्यवस्था को लेकर कुछ सवाल उठाये हैं
 भारत का बाज़ार अभी उछाल के दौर में है क्या इसका अर्थ यह है की अब बच्चों को और ज्यादा समय तक कार्य नहीं करना पड़ेगा ? क्या इस समय अब गरीबों की आवाज सुनी जाएगी और क्या शिक्षा को वास्तविक बनाया जायेगा प्रतेक व्यक्ति के लिए ?
गरीबों के बहिष्कार की व्यवस्थित प्रक्रियाएं
स्कूल गरीब बच्चों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है इस वातावरण को आसान और कम दर्दनाक बनाना अविस्वश्नीय है इसीलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की देश के आधे बच्चों का अंत स्कूल के बहार ही समाप्त हो जाता है
स्कूल में यह गंभीरता नहीं है की गरीब बच्चों के अस्तित्व को बनाये रखा जायेगा जब तक की वह दसवीं कक्षा तक न पहुच जाये इसकी कोई गारंटी नहीं है
1993 कक्षा एक में शामिल हुए 37% बच्चे ही दसवीं कक्षा तक पहुँच पाए
देश में विद्यालय को मध्य में ही छोड़ने वालो की संख्या लगभग सभी राज्यों में लड़कियों की संख्या लडको से अधिक थी
स्कूलों के लिए युद्ध जीतना
यंहा वास्तविकता को देखने का हमारा तरीका बदलने की अवश्यकता है , हमें यह स्वीकार करने की शुरुआत करनी चाहिए की गरीब अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए  पूरे दिल प्रयास करते हैं
यहाँ माता-पिता की उम्मीदों और आधे दिल वाली नीतियाँ बेमेल हैं जो की अभिभावकों की मांग को पहचानने और उनका जवाब देने की अनिच्छुक हैं
शैक्षिक प्रक्रिया को इतना योग्य होना चाहिए की वह गरीबो तक पहुँच सके और शिक्षा और उनके बिच की दूरी को कम कर सके , तभी बच्चे अपने अधिकारों का उपभोग कर पाएंगे और असलियत में  स्कूल के लिए लड़ाई जीतेंगे








श्री अरविन्द आश्रम :-

निर्माण -चौबीस नबम्बर 1926 (९० बर्ष पहले )
इस्थापक- श्री अरविन्द
प्रकार- धार्मिक संगठन
उदेश्ये- धयान और आध्यामिकता
मुख्यालय- पॉन्डेचेरी
मुख्या अंग- श्री अरबिंदो आश्रम ट्रस्ट 
 
श्री  अरविन्द आश्रम एक आध्यात्मिक आश्रम है जो भारत के पॉन्डेचेरी मे स्थित है !
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ये आश्रम श्री अरविद द्वारा एकत्रित किये गए कुछ शिष्यो द्वारा स्थापित किया गया इस आश्रम की स्थापना के बाद वे राजनीती से सन्यास लेकर पॉडिचेरी मे ही सदा के लिए रहने लगे!
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इनका  मुख्या उदेश्य दैवीय साधना को योग के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना है साधन अपनी इच्छा और प्रकर्ति के अनुसार साधना के और बढ़ते है !
प्रथम भाग
श्री अरबिंदो इंडिया और हेर फुटहेर मदर इंडिया ''भारत माता पृथ्वी का कोई छोटा सा छेत्र नहीं बल्कि वह सकती स्वरुप ईश्वर है विश्ब के सभी राष्ट्र को यह एक दैविये रूप मे अलग अस्तित्व बनाये रखने मे मदर करती है ! प्रेत्येक  राष्ट्र एक सकती स्वरुप है जो  एक सद भावना को  प्रकट करती है!

भारत एक भारता  सकती है जो हमारे आत्मा की जीवित ऊर्जा है !

"
इंडिया और हेर फुटहेर मदर इंडिया" को "श्री अरविंदो" और "  मदरके लेखन से संकलित किया है  इसमें उनके करए और जीवनी को भी रेखांकित किया गया है  !

"
श्री अरविंदो सोसाइटी " पॉन्डेचेरी  ट्रस्ट  15  अगस्त 1971 मे "श्री अरविंदो सोसाइटीप्रकाशित किया  गया !
दूसरा भाग-
ये अभिप्राय नहीं रखता क़ि हजारो लोग अज्ञानता क़ि साधना मे खो रहे है क्योंकि हम लोगो ने इस पृथ्वी पर देखा  था  उसकी मात्रा उपस्थिति भर ते साबित करता क़ि जब अज्ञान रूपी अंधकार प्रकाश मे परिबर्तित होगा जब शिक्षा रूपी प्रकाश सच मच मे इस पृथ्वी पर स्थापित  होगा ये सारी काला घोर अंधकार क़ि छाया ही पलट जाएगी !


तीसरा  भाग-

(1) भारत एक जीवित आत्मा है ये विश्ब मे उपस्थित अध्यात्मित ज्ञान को अब्तरित कर रही है.
(2) "
  मदर" शब्द बिना हिचकिचाहट शब्दो पर विशेष जोर देती है !
(3)
श्री अरबिंदो के अनुसार ये आश्रम मनुष्य के चारित्रिक गुणों को अदहयस और आत्मा से जोड़ने के लिए स्थापित किया गया मनुष्य के जीवन का सत्ये मृत्य प्राप्त करना है इस अंतिम चरण मे उनका उच्च स्तरीय आध्यात्मिक सचेतन से जोड़ना अनिवार्ये है उनका एक मात्र लक्छ्य आत्मा को परमात्मा मे समाबेशीत करना है !

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