निर्देशन
निर्देशन अंग्रेजी
शब्द guidance का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका अर्थ होता
है मार्ग दिखाना या मार्गदर्शन ।इस प्रकार मार्गदर्शन एक व्यक्ति द्वारा किसी
व्यक्ति को सहायता या परामर्श प्रदान करने की प्रक्रिया का नाम हैं।
परिभाषा
” स्किन्नर ” नवयुवकों को स्व अपने प्रति , दूसरे के प्रति
तथा परिस्थित्यिओ के प्रति समायोजन केरने की प्रक्रिया मार्गदर्शन है ।
” क्रो एंड क्रो ” मार्गदर्शन पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित एवं विशेषयज्ञता
प्राप्त पुरुषों तथा महिलाओ द्वारा किसी भी आयु के व्यक्ति को सहयता प्रदान केरना
है ताकि वह अपने जीवन की क्रियाओ को व्यवस्थित केर सके , अपने निजी दृस्टिकोन विकसित कर सके , अपने आप अपने निर्णय ले सके और अपने जीवन का बोझ उठा सके ।
मार्गदर्शन की आवश्यकता
शिक्षा संबंधी आवश्यकता – बालको को शिक्षा के क्षेत्र में उचित रूप ए समायोजित होने
के लिए एवं प्रगति के लिए मार्गदर्शन चाहिए ।
व्यावसायिक आवश्यकता – बालक अपनी
योग्यताओ तथा शक्तियों के अनुकूल कम चुनने के लिए उचित मार्गदर्शन मिलना चाहिए ।
व्यक्तिगत एव मनोवज्ञानिक आवश्यकता – बालको को मानसिक उलझनों तनावो तथा चिंताओ से मुक्त करने के
लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता हैं ।
इस प्रकार यदि हम
बालको को आत्म-समायोजन तथा सामाजिक समायोजन मे सहायता
प्रदान करना चाहते है तो उन्हे विकास मार्ग पर अग्रसर केरना चाहते है तो उनको
मार्गदर्शन प्रदान करना होगा ।
विध्यालयों मे
प्रद्द्त मार्गदर्शन के कार्य को तीन क्षेत्रों मे बाटा है –
Ø शैक्षिक
मार्गदर्शन
Ø व्यावसायिक
मार्गदर्शन
Ø व्यक्तिगत
मार्गदर्शन
व्यक्तिगत मार्गदर्शन का अर्थ
जैसा की नाम से
स्पष्ट है , व्यक्तिगत मार्गदर्शन व्यक्ति की अपनी
समस्याओके समाधान के साथ संबन्धित है ।
व्यक्तिगत मार्गदर्शन की परिभाषा
” क्रो एंड क्रो ” व्यक्तिगत
मार्गदर्शन वह सहायता है जो व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों से संबन्धित
दृष्टिकोण एव व्यवहार के विकास मे बहतर समायोजन के लिए प्रदान की जाती है ।
व्यक्तिगत मार्गदर्शन
:-
Ø सूचना या डाटा
एकत्रित करना
Ø समस्याओ के कारणो
का निदान
Ø उपचार संबंधी उपाय
सोचना
Ø व्यक्तिगत
मार्गदर्शन प्रदान करना
परामर्श
मार्गदर्शन
अंग्रेज़ी शब्द counselling का हिन्दी रूपान्तरण है
, जिसका अर्थ है राय , मशवरा , तथा सुझाव लेना या
देना ।
परिभाषा
” रोजेर्स ” परामर्श किसी व्यक्ति के साथ लगातार प्रत्यक्ष संपर्क की वह
कड़ी है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को उसकी अभिव्र्ति तथा व्यवहार मे परिवर्तन लाने मे
सहायता प्रदान केरना है।
” ब्रेमर ” परामर्श को स्व – समायोजन की ऐसी प्रक्रिया माना जा सकता है जिसमे परामर्श
लेने वाले को इस तरह सहायता की जा सके की वह पहले से अधिक स्व-निर्देशित बन सके ।
परामर्श के प्रकार
Ø आपातकालीन परामर्श
Ø समस्या
समाधानात्मक परामर्श
Ø निवारक परामर्श
Ø विकासात्मक
परामर्श
परामर्श देने या
लेने के अपने अपने ढंग तथा तरीके होते है तथा इस प्रक्रिया मे परामर्शदाता तथा
परामर्श लेने वाले की अलग अलग स्थितया तथा भूमिकाए होती है तथा उनका अपना अपना
योगदान रहता है । इन्ही को परामर्श तकनिक या उपागम बोला जाता है । मुख्य रूप से
ऐसे उपगमों मे तीन का विशेष रूप से उल्लेख होता है । जो कि निम्नलिखित है –
Ø निदेशात्मक
परामर्श
Ø अनिदेशात्मक
परामर्श
Ø समन्वित परामर्श
निदेशात्मक परामर्श
जैसा कि नाम से ही
विदित होता है इस प्रकार के परामर्श मे परामर्श द्वारा परामर्श लेने वाले को उसकी
समस्याओ को सुलझाने , उसका विक्स करने
तथा व्यवहार मे सुधार लाने जैसी बातो को लेकर उसे क्या करना चाहिए और क्या नही ,ऐसे निर्देश दिये जाते है। इस प्रकार का परामर्श पूरी तरह से परामर्शदाता
केन्द्रित ही होता है ।
अनिदेशात्मक परामर्श
इस प्रकार के
परामर्श का उदेश्य निदेशात्मक परामर्श की तरह परामर्शदाता की ओर से परामर्श लेने
वाले को निर्देश जारी करके उन पर अमल कराना नही होता बल्कि ऐसी परिस्थित्यों का
निर्माण तथा तकनिकों का प्रयोग करना है जिनसे परामर्शदाता को अपनी राय चुनने , उस पर चलने तथा अपनी समस्याओ के निवारण मे अधिक से अधिक
आत्मनिर्भरता प्राप्त हो सके । यहा इस प्रकार का परामर्श अब परामर्शदाता-केन्द्रित नही रहता बल्कि प्रमार्श्ग्राहीकेन्द्रित बन जाता
हैं ।
समन्वित परामर्श
जैसा की
निदेशात्म्क एव अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया , विशेषताओ तथा
कमियो से विदित हो सकता है की स्पष्ट रूप से किसी एक प्रकार की परामर्श प्रक्रिया
का अनुपालन करना सभी तरह की स्थितयों मे हर समय उपयुक्त नही रह सकता । पूरी तरह से
परामर्शदाता – केन्द्रित या
प्रमार्श्ग्राही – केन्द्रित बनाकर
परामर्श प्रक्रिया को संगठित करना इस द्रष्टि से कभी भी उपयुक्त नही ठहराया सकता ।
अवश्यकता इस बात की है की किसी भी एक द्रष्टिकोणमत या दार्शनिक धारणा से बधकर न
रहा जाय बल्कि जिसमे जो बाते अच्छी लगे उन्हे ग्रहण करते हुए एक ऐसा समन्वयकारी
रास्ता या उपागम कम मे लाया जाए जिससे परामर्श प्रक्रिया मे अधिक से अधिक अच्छे
परिणामो की प्राप्ति हो सके । इसी प्रकार के उपागम को ही समन्वित दृष्टिकोण या
विभिन्न मतावलंबी उपागम के नाम से जाना जाता है।
परामर्श एवं निर्देशन मे
अंतर
निर्देशन परामर्श
निर्देशन का
क्षेत्र व्यापक है । परामर्श का क्षेत्र संकुचित है ।
निर्देशन की आवश्यकता सभी व्यक्तियों को होती है। परामर्श की आवश्यकता केवल उन व्यक्तिओ
को होती है
जिन्हें गंभीर
शैक्षिक,मनोवेज्ञानिक स्मस्याओ का
सामना करना पड़ता है
|
निर्देशन व्यक्तिक या
समूहिक रूप से दिया जा सकता है।
पपरामर्श मुख्य रूप से
समूहिक है।
निर्देशन समय
, शक्ति , तथा वितिय रूप से मितव्ययी है । परामर्श मे अधिक समय लगता
है और खर्चीली
प्रक्रिया है
निर्देशनकर्ता मुख्यता शैक्षिक एवं व्यावसायिक परामर्शदाता मुख्यत
स्वेंगात्मक और समायोजनात्मक
समस्याओ से
संबन्धित ही । समस्याओ से संबन्धित है।
निर्देशांकर्ता
प्राय निर्देशन का विषयवस्तु जानता है । परामर्शदाता पहले से परामर्श का विषयवस्तु न जनता
हो
निर्देशन मे
साक्षात्कार अनिवार्ये नहीं है।
परामर्श मे साक्षात्कार अनिवार्ये है ।
निर्देशन प्रदान
केरने क लिए परामर्शदाता और परामर्श प्रदान केरने क
लिए परामर्शदाता
प्रार्थी मेनि घष्ठता ज़रूरी नहीं है । और
प्रार्थी मे घनिष्ठता ज़रूरी है ।
परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की भूमिका
परामर्श एवं
निर्देशन मे शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है ।बालक को प्रत्येक स्थिति पर निर्देशन की
आवश्यकता होती है , और बालक के शैक्षिक विकास की जानकारी
सबसे ज़्यादा एक अध्यापक को होती है , अत एक शिक्षक है जो अपने बालक
को सबसे सही निर्देशन दे सकती है।
अत हम बोल सकते है की
परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की अहम भूमिका है ।
बालक के विकास मे
सहायक ।
बालको की
कमजोरियों तथा स्तर के अनुसार परामर्श या निर्देशन देने मे सहायक ।
बालको को
प्रोत्साहित करने मे सहयाक ।
बालको को सही दिशा
प्रदान केरने मे सहयाक ।
STUDY OF GUIDANCE &
COUNSELLING DURING
PSE-II
Name Of School : G.B.S.S.SCHOOL
Government Boys Senior Secondary School, Hauz
Rani, New Delhi
Name of
principal : Dr. Shakti – Raj
Total
strength of students : 600 approx.
No. of days
on PSE : 2 weeks.
OUR INTERACTIVE SESSION WITH SCHOOL PRINCIPAL & FACULTY
Questions asked by teachers
गवर्नमेंट बौय्स सीनियर सेकंड्री स्कूल,हौज़ रानी मै बच्चो
को परामर्श व निर्देशन देने कई लिए किसी भी प्रकार के परामर्शदाता की सुविधा नहीं
थी | विधालय के अध्यापक ही बच्चो की समस्याओ को सुलझाते थे और उनको परामर्श देते
थे | यदि कोई बच्चा कोई गलती करता है तो दोनों पक्षों की बात सुनी जाती यही और यदि
अध्यापक समस्याओ को नहीं सुलझा पता था तो वह विधार्थियों के माता पिता से बात करते
है और बच्चो को समझाने व संयम रखने की हिदायत देते थे |
किसी भी ऐसी समस्या जिसका समाधान बच्चा स्वयं नहीं कर प्
रहा है उसके लिए उसे विशेष प्रकार कई अध्यापक की आवश्यकता होती है अर्थात परामर्श
की आवश्यकता होती है | जिसके लिए आवशयक है की विधालय में एक परामर्शदाता की सुविधा
होनी चाहिए है जिससे की विद्यार्थी का सही मार्गदर्शन हो और वह एक अच्छे नागरिक
बने व किसी भी प्रकार की समस्या से न जूझे |
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